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Azam Khan और जौहर यूनिवर्सिटी: संघर्ष, बलिदान और एक सपने की दास्तान  azam klhan  jauhar university  jauhar university

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Azam Khan’s Dream Project

जब कोई इंसान अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए जीता है, तो उसका हर कदम एक नई इबारत लिखता है। कुछ ऐसे ही थे आजम खान, समाजवादी पार्टी के वो कद्दावर नेता, जिनकी पूरी जिंदगी गरीबों, मजलूमों और शिक्षा से वंचित समाज के लिए समर्पित रही। उनकी सबसे बड़ी देन “जौहर यूनिवर्सिटी” है, जो सिर्फ ईंट-पत्थर की इमारत नहीं, बल्कि हज़ारों सपनों का घरौंदा है।

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               संघर्षों की बुनियाद पर खड़ी जौहर यूनिवर्सिटी

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Rampur की सरज़मीं पर एक ऐसी यूनिवर्सिटी खड़ी करना, जहाँ गरीबों के बच्चे भी आला तालीम हासिल कर सकें, ये कोई आसान काम नहीं था। आजम खान ने जब इस सपने को आकार देना शुरू किया, तो उन्हें सिर्फ बाहरी दुश्मनों से ही नहीं, बल्कि अपनों की बेरुखी और सत्ता के जुल्मों से भी लड़ना पड़ा।

कहते हैं कि जब एक आदमी अपने हक की लड़ाई लड़ता है, तो मुश्किलें आती हैं, लेकिन जब कोई समाज के हक की लड़ाई लड़ता है, तो उसे मिटाने की साजिशें रची जाती हैं। आजम खान और उनका परिवार भी इन्हीं साजिशों का शिकार हुआ। कभी झूठे मुकदमे, कभी जेल, कभी बदनाम करने की साजिशें और कभी उनकी बनाई यूनिवर्सिटी को उजाड़ने की कोशिशें—हर तरीके से उन्हें तोड़ने की कोशिश की गई। लेकिन वो कहते हैं न, “जिसे मिटाने की साजिश हो, वही इतिहास बनाता है।”

आख़िर क्यों इतना दर्द सहा?

आजम खान के पास ताकत थी, दौलत थी, राजनीति में बड़ा कद था—वो आराम से अपनी ज़िंदगी जी सकते थे। लेकिन उन्होंने अपने लिए नहीं, बल्कि उन नौनिहालों के लिए सोचा जो किताबों से महरूम थे, उन गरीब मां-बाप के लिए सोचा जो अपने बच्चों को पढ़ा नहीं सकते थे, उन लड़कियों के लिए सोचा जिन्हें तालीम से दूर रखा जाता था। उन्होंने ठान लिया कि Rampur के बेटे-बेटियों को भी वही तालीम मिलेगी जो बड़े शहरों में मिलती है।

परिवार ने भी सहा ज़ुल्म

आजम खान अकेले नहीं थे, उनके साथ उनका पूरा परिवार भी इस जंग का हिस्सा बना। उनकी पत्नी, बेटा और करीबी लोग हर मुश्किल के सामने ढाल बने रहे। कभी जेल, कभी मुकदमे, कभी बेइज्जती की साजिशें, लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा। azam khan

आज का सच

आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो जौहर यूनिवर्सिटी सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि इंसाफ और हौसले की पहचान बन चुकी है। ये उन तमाम लोगों को याद दिलाती है कि अगर किसी के दिल में सच्ची ख्वाहिश हो और इरादा मजबूत हो, तो उसे दुनिया की कोई ताकत झुका नहीं सकती।

 

आजम खान ने ताउम्र समाज को रोशनी देने के लिए लड़ाई लड़ी,

लेकिन सत्ता की ताकतों ने उन्हें मिटाने की हरसंभव कोशिश की। सवाल ये है कि क्या हम उनके इस बलिदान को भूल सकते हैं? क्या हम उनकी इस अमानत की हिफाज़त कर सकते हैं?

ये सिर्फ एक यूनिवर्सिटी नहीं, बल्कि इंसाफ और हौसले की जिंदा मिसाल है, जो आने वाली नस्लों को हमेशा याद दिलाएगी कि “अगर इरादे नेक हों, तो पूरी कायनात तुम्हारे साथ होती है।”

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