Azam Khan

अब्दुल्ला आज़म खान: एक परिवार पर टूटे ज़ुल्म के पहाड़ और न्याय की उम्मीद

azam khan
azam khan

Abdullah Azam khan : की ज़मानत से कौन लोग परेशान हैं ?क्यों गूंज उठा फिर एक बार ये नाम Azam Khan

https://youtu.be/4c9OJcCNfnI?si=RUiaIMqv65_NtYCA

 

राजनीति कभी-कभी व्यक्तिगत दुश्मनी और सत्ता के दुरुपयोग का अड्डा बन जाती है।

Azam Khan
Azam Khan

जब कोई सरकार अपनी शक्ति को राजनीतिक प्रतिशोध के लिए इस्तेमाल करती है, तो सबसे बड़ा नुक़सान उन लोगों को होता है, जिनका एकमात्र अपराध विपक्ष में होना होता है। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आज़म खान, उनकी पत्नी तज़ीन फातिमा और बेटे अब्दुल्ला आज़म के साथ जो कुछ हुआ, वह एक ऐसी ही कहानी है—राजनीतिक षड्यंत्रों, झूठे मुक़दमों और सत्ता की क्रूरता की।

300+ मुक़दमे: क्या यह इंसाफ़ है या बदले की राजनीति?
जब सत्ता किसी से डरती है, तो वह उसे झुकाने के लिए हर हथकंडा अपनाती है। आज़म खान और उनके परिवार के खिलाफ 300 से ज़्यादा मुक़दमे दर्ज किए गए। इनमें से कई केस तो इतने हास्यास्पद थे कि किसी भी निष्पक्ष न्यायपालिका में वे टिक नहीं सकते थे।

अब्दुल्ला आज़म खान पर दो जन्म प्रमाण पत्र रखने का आरोप लगाया गया,

जबकि यह एक प्रशासनिक गलती थी, जिसे साधारण प्रक्रिया के तहत सुधारा जा सकता था।
उनके परिवार को जमीन हड़पने, चोरी करने जैसे संगीन अपराधों में फंसाया गया, जो स्पष्ट रूप से राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा थे।
2019 से 2023 तक उनके खिलाफ झूठे मुक़दमों की झड़ी लगा दी गई, ताकि वे और उनका परिवार कानूनी लड़ाई में ही उलझकर रह जाएं।

 

आज़म खान के ड्रीम प्रोजेक्ट जौहर यूनिवर्सिटी को निशाना बनाया गया, ताकि मुस्लिम शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने जो योगदान दिया था, उसे खत्म किया जा सके।
यह सत्ता की क्रूरता का एक उदाहरण था, जहां सरकार और प्रशासन का इस्तेमाल एक परिवार को मिटाने के लिए किया गया।

jauhar university rampur
jauhar university rampur
jauhar university rampur
jauhar university rampur

सत्ता का ज़ुल्म और बेईमान दोस्त
राजनीति में दुश्मनों से ज़्यादा ख़तरनाक वो लोग होते हैं जो दोस्त बनकर धोखा देते हैं।
अब्दुल्ला आज़म खान और उनके परिवार के खिलाफ सिर्फ सत्ता ने ज़ुल्म नहीं किए, बल्कि उनके अपने लोग भी उनके साथ खड़े होने के बजाय मौन तमाशा देखते रहे।

समाजवादी पार्टी के कई नेताओं ने उनका खुलकर समर्थन नहीं किया।
कुछ लोगों ने उनके ख़िलाफ़ झूठी कहानियां गढ़ीं ताकि वे सत्ता के करीबी बने रहें।
उनके पुराने सहयोगी भी चुप रहे, क्योंकि वे सरकार के गुस्से से बचना चाहते थे।
यह राजनीति का कड़वा सच है—जो सत्ता में नहीं होता, उसे बचाने कोई नहीं आता।

 

जेल में कटे दिन: एक बेटे और मां की बेबसी
जब अब्दुल्ला आज़म और उनकी मां तज़ीन फातिमा को जेल भेजा गया, तो यह सिर्फ एक सज़ा नहीं थी, बल्कि एक मानसिक और भावनात्मक यातना थी।

dr tazeen fatima
Dr Tazeen Fatima

एक बेटे ने अपनी मां को जेल में तड़पते देखा।
एक मां को अपने जवान बेटे को कैदी के रूप में देखने की मजबूरी झेलनी पड़ी।
आज़म खान, जो कभी रामपुर की सियासत के शेर थे, अपनी पत्नी और बेटे के लिए कुछ न कर पाने की पीड़ा में डूबे रहे।
यह सिर्फ एक परिवार की तकलीफ़ नहीं थी, बल्कि एक पूरी क़ौम के लिए एक संदेश था—”अगर तुम सत्ता के खिलाफ़ बोलोगे, तो तुम्हारी यह हालत होगी।”

abdullah azam khan
Abdullah Azam Khan
abdullah azam khan bail
Abdullah Azam Khan

जमानत: उम्मीद की एक किरण
लेकिन सत्य को कितने दिन दबाया जा सकता है?
झूठे मुक़दमों का सच सामने आने लगा और अब अब्दुल्ला आज़म और उनकी मां को जमानत मिल चुकी है।

यह सिर्फ एक कानूनी जीत नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए उम्मीद की जीत है, जो सत्ता के ज़ुल्म के खिलाफ खड़े होते हैं।
यह दिखाता है कि न्यायपालिका अब भी ज़िंदा है, और राजनीतिक षड्यंत्र हमेशा कामयाब नहीं होते।
लेकिन सवाल यह है—क्या यह काफ़ी है?
क्या उन दो सालों का हिसाब मिलेगा, जो एक मां और बेटे ने जेल में गुज़ारे?
क्या उन आंसुओं की कोई कीमत है, जो इस परिवार ने सहे?
क्या सत्ता से सवाल पूछा जाएगा कि आखिर मुक़दमे झूठे क्यों निकले?

यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई
अब्दुल्ला आज़म और तज़ीन फातिमा की ज़मानत के साथ एक अध्याय समाप्त हुआ है, लेकिन न्याय की लड़ाई अभी भी बाकी है।

क्या झूठे मुक़दमे दर्ज करने वालों को सज़ा मिलेगी?
क्या सरकार उन परिवारों से माफ़ी मांगेगी, जिनकी ज़िंदगी नर्क बना दी गई?
क्या सत्ता के दुरुपयोग का यह खेल रुकेगा?
आज, जब कोई बेगुनाह जेल से बाहर आता है तब वो पहले जैसा नहीं रहता वैसे ही अब्दुल्ला आज़म जेल से बाहर तो हैं लेकिन वो वैसे नहीं जैसे थे।
वे एक नई आग और हौसले के साथ लौटे हैं और आज़म साहब भी इसी हौसले के साथ लौटेंगे।
यह सिर्फ उनकी लड़ाई नहीं थी, यह हर उस इंसान की लड़ाई थी, जो सत्ता की क्रूरता का शिकार बनता है।

हमें याद रखना होगा—ज़ुल्म हमेशा नहीं टिकता, लेकिन इंसाफ़ की लड़ाई कभी हारती नहीं।

कभी ज़ुल्म के आगे न झुके ओर अपना का साथ कभी न छोड़ों – जयहिंद –

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *