मोहम्मद आज़म ख़ान जेल का वक्त में ओर मेरा अल्लाह

जेल की ऊंची दीवारें और लोहे के दरवाज़े किसी भी इंसान को तोड़ सकते हैं, लेकिन कुछ शख्सियतें ऐसी होती हैं जो इन दीवारों से भी ऊँची उड़ान भरती हैं।
आज़म खान साहब का सफर भी कुछ ऐसा ही है।
बाहर की दुनिया में भले ही वो बेड़ियों में जकड़े हों, लेकिन उनकी रूह, उनका ईमान, और उनकी हिम्मत आज भी आज़ाद है।
जेल की कोठरी में जहाँ हर तरफ़ मायूसी और तन्हाई का साया होता है, वहाँ आज़म खान साहब अपनी इबादत से एक नई रोशनी जगाते हैं।
उनका हर दिन अज़ान की आवाज़ से शुरू होता है और सजदे में ख़त्म होता है। पाँच वक़्त की नमाज़, जो कभी एक फ़र्ज़ थी, आज उनके लिए ज़िंदगी का सबसे सुकून भरा हिस्सा बन गई है।
जब वो सजदे में झुकते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे वो अपने सारे गम और दर्द अपने रब के सामने रख देते हैं। यह नमाज़ सिर्फ़ इबादत नहीं, बल्कि उनकी हिम्मत और हौसले का भी सबूत है।
जेल की ज़िंदगी में जहाँ हर कोई कमज़ोर पड़ जाता है, वहीं आज़म खान साहब की मज़बूती और बढ़ गई है। उन्होंने इस मुश्किल वक़्त को सब्र और हिम्मत के साथ स्वीकार किया है। वो जानते हैं कि ये परीक्षा का समय है, और एक मोमिन के लिए हर मुश्किल एक इम्तिहान होती है। उनका शांत चेहरा, उनकी अटल आँखें, और उनके होंठों पर हमेशा रहने वाली हल्की मुस्कान बताती है कि अंदर की दुनिया में वो कितने मज़बूत हैं।
लोगों को लगता था कि जेल में उनका हौसला टूट जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि, इस कैद ने उन्हें दुनिया की भाग-दौड़ से दूर, अपने आप से और अपने रब से ओर जोड़ दिया है।
उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कई तूफ़ान देखे हैं, लेकिन ये तूफ़ान कुछ अलग है। ये एक ऐसा तूफ़ान है जिसने उन्हें और भी निखार दिया है। वो आज भी उतने ही मज़बूत और अटल हैं जितने पहले थे, शायद अब और भी ज़्यादा। यह जेल उनके लिए एक तपस्या बन गई है, एक ऐसी तपस्या जिसने उनके राजनीतिक कद को और भी ऊँचा कर दिया है।
